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Mera Wajud
तुमसे जुदा होकर हूँ एक पैर की चप्पल
वजूद में तो हूँ पर काम का नहीं
तुम नहीं पास तो वीराने हैं ऐसे
महफ़िल हर तरफ़ है आराम तो नहीं
हर एक साँस अब तो ऐसे धड़कती है
ये साँस अपनी ही है उधार तो नहीं
तेरे इस गुमान से एक बात पूछनी थी मुझे
मेरा प्यार गहरा है की तेरा क़द उंचा हैं
तेरे दिल की नफ़रत से ये सवाल था मेरा
मैं वाक़ई ग़लत हूँ
या तेरा नज़रिया बदला है
कहते हैं सच्ची महनत कभी ज़ाया नहीं होता
असल रिशते में कुछ खोया कुछ पाया नहीं होता
मन के तार हम मिलने नहीं देते , दिल की गाँठ हम खुलने नहीं देते
नफ़रत के चस्मे को निकाल कर देखो
हर शख़्स यहाँ अपना है कोई पराया नहीं होता
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